Friday, January 31, 2020

पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष कुमार 'प्रीत' : शीतला घाट

देश पर है अभिमान लिखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।

नही सुरक्षित घर मे नारी,
सदा सत्य पर झूठ है भारी।
रक्षक ही भक्षक है अब तो,
सबकी है अपनी लाचारी ।।

देख के है हैरान लिखेंगे ।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।1।।

जात धर्म मे बटी हुई है,
मानवता ही घटी हुई है।
संस्कार की चादर देखा,
जहाँ तहाँ से फटी हुई है।।

इसी को क्या उत्थान लिखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।2।।


गली गली में यहाँ मवाली,
शहर शहर में बसे बवाली।
जहाँ सुरक्षित रहें बेटिया ,
कोई जगह न ऐसी खाली।।

मुश्किल को आसान लिखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।3।।

जो है हम सब के अन्नदाता,
कर्ज में डूबा वही बिधाता।
छोड़ बिलखता निज कुटुम्ब को,
फाँसी को है गले लगाता ।।

कैसे खुशी किसान लिखेंगे,
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।4।।

अपनो से जो रहे कटे है,
देश की खातिर सदा मिटे है।
ग्रीष्म शीत बरसात हो चाहे,
सीमा पर जो रहे डटे है ।।

होते नित कुर्बान लिखेंगे ।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।5।।

शीर्ष पे जो नेता आ जाते,
एक दूजे का दोष गिनाते।
मुझमे कम है तुझमे ज्यादा,
भ्र्ष्टाचार की बात बताते ।।

करते बस अपमान लिखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।6।।

घर का कूड़ा बाहर फेका,
क्या होगा जो किसी ने देखा।
कौन लड़ाई करे किसी से,
सबाकी अपनी लक्ष्मण रेखा।।

इसे स्वस्छ अभियान लिखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।7।।

चलता यहाँ पे गोरख धंधा,
अपना तो कानून है अंधा।
कभी सही जो करना चाहे,
अध्यादेश का पड़ता फंदा।।

आरक्षण का मान लिखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।8।।

चारो तरफ तो यही शोर है,
हाथ मे जिसकी बागडोर है।
जनता का दुख दर्द क्या समझे,
उसका ध्यान तो कही और है।।

कैसे इन्हें प्रधान लिखेंगे ।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।9।।

हम है ऐसे देश के वासी,
जहाँ की महिमा थी अविनासी।
चारो तरफ वहाँ फैले है,
कुकर्मी साधु सन्यासी ।।

अंधभक्त अनजान लिखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।10।।

हमको खुद ही चलना होगा,
अंधियारे को छलना होगा।
अगर रोशनी की चाहत है,
स्वयम दीप बन जलना होगा ।।

'प्रीत' शुरू अभियान लिंखेंगे।
कब तक झूठी शान लिखेंगे।।11।।


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