बदल गई बचपन की सूरत बदल गया ये तन अपना।
लेकिन अब तक बदल न पाया बच्चो वाला मन अपना।।
छुआ छुई ओ छुपा छुपी ओ अंटी ओ गुल्ली डंडा,
तरह तरह की जीत की खातिर अपनाना ओ हथकंडा,
बदल गए ओ खेल पुराने बदल गया बचपन अपना।
लेकिन अब तक बदल न पाया बच्चो वाला मन अपना।।
काले बल सफेद हो रहे उम्र बयालीस पार हुआ,
परिवर्तन है नियम प्रकृत का इससे सब दो चार हुआ,
बदल गई ये सारी दुनिया बदल गया जीवन अपना।
लेकिन अब तक बदल न पाया बच्चो वाला मन अपना।।
आंखे भी कमजोर हो रही और ये दो से चार हुई,
कठिन परिश्रम करने में अब यह शरीर लाचार हुई,
बदल गया परिमाप बदन का बदल गया है बसन अपना।
लेकिन अब तक बदल न पाया बच्चो वाला मन अपना।।
बच्चे भी अब बड़े ही गए बन गए बाबा नाना जी,
अपने ही घर मे सब अपने बात पे आना काना जी,
बदल गए संस्कार पुराने बदल गई उलझन अपना।
लेकिन अब तक बदल न पाया बच्चो वाला मन अपना।।
बुढ़ापे को ओर अग्रसर लगती है अपनी काया,
'प्रीत' है सच्चा एक जगत में बाकी सब मिथ्या माया,
बदल गई है सोच सभी की बदल गया दर्शन अपना।
लेकिन अब तक बदल न पाया बच्चो वक मन अपना।।
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