मैं इस ब्लाग का शुभारम्भ बनारस के जाने माने मशहूर शायर ज़नाब "मेयार सनेही"जी से कर रहा हूँ। इनका जन्म ०७-०३-१९३६ में हुआ। बनारस के कवि सम्मेलनों, कवि गोष्ठियों और मुशायरों को अपने शेरों से आप एक नई ऊँचाई प्रदान करते हैं । आप की ग़ज़लें,नज़्म विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर छपती आ रही हैं और आप की १९८४ में एक नज़्म की पुस्तक "वतन के नाम पाँच फ़ूल" भी प्रकाशित हो चुकी है। लगभग ४० सालों से आप साहित्य सर्जना में लगे हैं और ये क्रम अभी जारी है।
निवास-एस.७/९बी,गोलघर कचहरी,वाराणसी।
सम्पर्कसूत्र-९९३५५२८६८३
तो लीजीए उनकी ग़ज़लों का आनन्द........
1. ग़ज़ल/ कैसे वो पह्चाने ग़म :-
कैसे वो पह्चाने ग़म ।
पत्थर है क्या जाने ग़म।
दुनिया मे जो आता है,
आता है अपनाने ग़म।
नये गीत लिखवाने को,
आये किसी बहाने ग़म।
जब तक मेरी साँस चली,
बैठे रहे सिरहाने ग़म।
मैनें सोचा था कुछ और,
ले आये मयख़ाने ग़म।
जिसको अपना होश नहीं,
उसको क्या गरदाने ग़म।
दिल सबका बहलाते हैं,
जैसे हों अफ़साने ग़म।
क्या कहिये ’मेयार’ उसे,
जो खुशियों को माने ग़म।
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2. ग़ज़ल/ मोहब्बत की नुमाइश चल रही है :-
मोहब्बत की नुमाइश चल रही है।
मगर परदे में साजिश चल रही है।
वो बातें जिनसे मैं जख़्मी हुआ था,
अब उन बातों में पालिश चल रही है।
वो इक सजदा जो मुझसे हो न पाया,
उसी को लेके रंजिश चल रही है।
वो देखो जिन्दगी ठहरी हुई है,
मगर जीने की ख़्वाहिश चल रही है।
कोई ’मेयार’ होगा जिसकी खातिर,
सिफ़ारिश पर सिफ़ारिश चल रही है।
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3.ग़ज़ल/मेयार सनेही/कौन बे-ऐब है पारसा कौन है :-
कौन बे-ऐब है पारसा कौन है ?
किसको पूजे यहाँ देवता कौन है ?
जब चलन में है दोनों तो क्या पूछना,
कौन खोटा है इनमें खरा कौन है ?
ज़हर देता रहे औ’ मसीहा लगे,
आप जैसा यहाँ दूसरा कौन है?
रूप है इल्म है सौ हुनर हैं मगर,
ऐसी चीजों को अब पूछता कौन है?
अन्न उपजाने वाला मरा भूख से,
इस मुक़द्दर का आख़िर ख़ुदा कौन है ?
कौन ’मेयार’है यह नहीं है सवाल,
ये बताएँ कि वो आपका कौन है ?
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4. ग़ज़ल/ हसीं भी है मोहब्बत की अदाकारी :-
हसीं भी है मोहब्बत की अदाकारी भी रखता है।
मगर उससे कोई पूछे वफ़ादारी भी रखता है ।
इलाजे-जख़्मे-दिल की वो तलबगारी भी रखता है,
नये जख़्मों की लेकिन पूरी तैयारी भी रखता है।
इक ऐसा शख्स मेरी ज़िन्दगी में हो गया दाख़िल,
जो मुझको चाहता है मुझसे बेज़ारी भी रखता है।
वो मत्था टेकता है गिड़गिड़ाता है कि कुछ दे दो,
फ़िर उसके बाद ये दावा कि खुद्दारी भी रखता है।
वही है आजकल का बागबाँ जो हाथ में अपने,
दरख़्तों की कटाई के लिये आरी भी रखता है।
ख़ुदा के नाम पर भी तुम उसे बहका नहीं सकते,
वो दीवाना सही लेकिन समझदारी भी रखता है।
तुम उसके नर्म लहजे पर न जाओ ऐ जहाँ वालों,
वो है ’मेयार’ जो लफ़्जों में चिनगारी भी रखता है।----------------------------------------------
मेयार सनेही जी ने नये-नये रदीफ़ और काफ़िया को लेकर कई ग़ज़लें कही हैं जैसे इस ग़ज़ल में.........
5. ग़ज़ल/ इक गीत लिखने बैठा था :-
इक गीत लिखने बैठा था मैं कल पलाश का।
ये बात सुन के हँस पडा़ जंगल पलाश का ।
साखू को बे-लिबास जो देखा तो शर्म से,
धरती ने सर पे रख लिया आँचल पलाश का।
रितुराज के ख़याल में गुम होके वन-परी,
कब से बिछाये बैठी है मख़मल पलाश का।
सूरज को भी चराग़ दिखने लगा है अब,
बढ़ता ही जा रहा है मनोबल पलाश का।
रंगे-हयात है कि है मौसम का ये लहू,
या फ़िर किसी ने दिल किया घायल पलाश का।
तनहा सफ़र था राह के मंजर भी थे उदास,
अच्छा हुआ कि मिल गया संबल पलाश का।
’मेयार’ इन्कलाब का परचम लिये हुए,
उतरा है आसमान से ये दल पलाश का।
पंडित जी,
ReplyDeleteआपने तो कई दिन का भोजन एक साथ परोस दिया। मेयार सनेही साहब का तो एक-एक शेर लाजबाव है। एक शेर पढ़ने को तो चंद लम्हे चाहिएं लेकिन गुनने के लिए तो एक दिन भी कम हैं।
आपका आभार आपने मेयार सनेही साहब से मुलाकात कराई।
वाह वाह
ReplyDeleteइस अनमोल रतन के लिये शुक्रिया
उम्मीद है ऐसे नायाब हीरे मिलते रहेंगें अब हमेशा।
आपकी इस शानदार कोशिश को नमस्कार।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है. हिंदी में लिखते है,अच्छा लगता है.
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ReplyDeletemain tahedil se mubaraqbaad dena chahata hoon...azim shayar janab meyar snehi ko aur aapka shuqriya ada karna chahta hoon jinhone humen eisee nayaab ghazalen padhne ko dilain.................sachmuch mood fraish hogaya
ReplyDeleteAAPSE TOH MULAQAT KARENGE
-albela khatri
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteमेयार जी की गजलों का पहले से ही प्रशंसक हूँ । कई बार उनको विभिन्न कवि सम्मेलनों/मुशायरों में सुना है । बनारस के इस शायर/गजलकार को प्रस्तुत करने का आभार । क्या कुछ और भी रचनायें यहाँ मिलेंगी मेयार साहब की ? सम्भव हो तो कुछ मुक्तक/शेर प्रस्तुत करें मेयार जी के ।
ReplyDeletewah ! subah ras may ho gai, narayan narayan
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteप्रसन्न वदन जी,
ReplyDeleteवाह क्या बात है !!!!
मैं तो पहली बार में मुरीद हो गया हूँ आपका और आपकी कोशिश का। आपके इस प्रयास के लिये साधुवाद कि एक ओर जहाँ गाल बजाने की परंपरा अपने चरम पर जा रही वहीं दूसरी ओर आप जैसे लोग भी इस धरातल पर बचें हैं जो दूसरों को मान देने / दिलाने के प्रयास में रत हैं।
मेयार साहब के लिखे पर कुछ भी कहना गुस्ताखी होगी और यह मेरे संस्कारों में नही है। पकी हुई दाढ़ी और धवल केश कह देते हैं कि स्याही का कितना उपयोग किया है (यहाँ मेरा आशय उनके अनुभव को लेकर है) एक बेहतरीन और अदीम शख्शियत और उनके रचनाकर्म से परिचय कराने के लिये पुन:श्र्च धन्यवाद,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कृपया मेयार साहब से मेरे लिये आशिर्वाद जरूर मांग लीजियेगा
मेयार साहब से मिल कर प्रसन्नता हुई। उनकी गजलें वाकई उंचे मेयार की हैं।
ReplyDelete-----------
SBAI TSALIIM
bahut umda gazlen hain , parichay karane ke liye dhanyawaad. dhanyawaad.
ReplyDeleteबे्हतरीन रचना के लिये बधाई। यदि शब्द न होते तो एह्सास भी न होता। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है। लिखते रहें हमारी शुभकामनाएं साथ है।
ReplyDeleteवाह क्या कहने,बहुत ही खूबसूरत गज़लें पढ़ने को मिली। एक-एक शेर हीरों सा जङा था। धन्यवाद प्रसन्न जी ।
ReplyDeletevaah!! bahut khoob!!
ReplyDeleteप्रिय प्रसन्न वदन जी
ReplyDeleteमेयार सनेही जी के शानदार गज़लों के साथ ब्लाग शुरू करने के लिए साधूवाद। मैने काव्यगोष्ठियों में मेयार जी को सुना है और साथ काव्यपाठ का भी अवसर मिला है। मै प्रथम परिचय से ही इनका मुरीद रहा हॅंू । आज पढ़ने को भी मिला। ---धन्यवाद।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
devendrambika@gmail.com
कैसे वो पह्चाने ग़म ।
ReplyDeleteपत्थर है क्या जाने ग़म।
लाजवाब......!!
ज़हर देता रहे औ’ मसीहा लगे,
आप जैसा यहाँ दूसरा कौन है?
बहुत खूब कहा ......!!
तुम उसके नर्म लहजे पर न जाओ ऐ जहाँ वालों,
वो है ’मेयार’ जो लफ़्जों में चिनगारी भी रखता है।
चिनगारी भी देखि धर भी ....बहुत खूब.....!!
स्नेही जी से मुलकात कर्वने और उनकी लज्वाब गज़लें पढवाने के लिये धन्य्वाद्
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा प्रयास है आपका. मेयार सनेही जी के बारे में जान अच्छा लगा.
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़लें पढ्वाने के लिए आभार
ReplyDeleteआप काश हम भी कहीं मेयार साहब के आसपास होते तो उनकी ग़ज़लों का आनंद उनके रूबरू हो कर लेते और उनसे बहुत कुछ सीखते भी
bahut hee dukhad samaachar hai...
ReplyDeletevinay ji,
ReplyDeleteaap ne kahi aur ki tippani yahaa kar dee.. yaa jaanboojhkar.....
चतुर्वेदी जी, प्रयास वन्दनीय है और गज़ले उम्दा। एक सुझाव था कि एक साथ देने के बजाय यदि हर हफ्ते एक गज़ल आती तो मज़ा और भी आता।
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब.
ReplyDeleteआपका स्वागत है...
भाई मेयार की ग़ज़लों के हर शेर मंत्र से लगते हैं
ReplyDeleteरामदास अकेला
भाई आप बहुत पुनीत कार्य कर रहे हैं. बनारस आपको रहती दुनिया तक याद करेगा. बहुत-बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं
ReplyDeleteNice
ReplyDelete.