आज काशी की अमर विभूति प.धर्मशील चतुर्वेदी जी की जयन्ती है जिनका हाल ही
में देहांत हो गया था | इस अवसर पर बनारस के साहित्य, चित्रकला, लेखनसे
जुड़े लोगों ने कविताओं, गजलों, और संस्मरण के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि
प्रस्तुत की | मैंने भी उनपर लिखी रचना के जरिए अपनी संवेदना प्रकट किया |
इस अवसर पर प. हरिराम द्विवेदी, श्री जितेन्द्र नाथ मिश्र,प. मदन मोहन
चौबे, सांड बनारसी, अख्तर बनारसी, श्री मान बहादुर सिंह आदि काशी के
गणमान्य नागरिकों सहित उपस्थित थे | इस अवसर पर मेरी कुछ पंक्तियाँ...
"धर्मशील जी व्यक्ति नहीं थे, संस्कृति के संवाहक थे |
काशी की हर एक सभा के आजीवन संचालक थे |
काशी की हर एक सभा में अट्टहास उनका गूँजा,
उनके जैसा जिंदादिल अब और नहीं कोई दूजा,
कला-पारखी, ज्ञानवान थे,निश्छल मानों बालक थे.....
धर्म, कला, साहित्य सभी पर, उनका दखल बराबर था,
न्यायालय या कोई सभा हो सबमे उनका आदर था,
व्यंग्यकार, अधिवक्ता, उम्दा लेखक और विचारक थे....."
"धर्मशील जी व्यक्ति नहीं थे, संस्कृति के संवाहक थे |
काशी की हर एक सभा के आजीवन संचालक थे |
काशी की हर एक सभा में अट्टहास उनका गूँजा,
उनके जैसा जिंदादिल अब और नहीं कोई दूजा,
कला-पारखी, ज्ञानवान थे,निश्छल मानों बालक थे.....
धर्म, कला, साहित्य सभी पर, उनका दखल बराबर था,
न्यायालय या कोई सभा हो सबमे उनका आदर था,
व्यंग्यकार, अधिवक्ता, उम्दा लेखक और विचारक थे....."
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