Friday, January 31, 2020

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : दुर्गा घाट

जा रहा है जिधर बेखबर आदमी ।
वो नहीं मंजिलों की डगर आदमी ।

उसके मन में है हैवान बैठा हुआ,
आ रहा है हमें जो नज़र आदमी ।

नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर,
आदमी जल रहा देखकर आदमी ।

दोस्त पर भी भरोसा नहीं रह गया,
आ गया है ये किस मोड़ पर आदमी ।

क्या करेगा ये दौलत मरने के बाद,
मुझको इतना बता सोचकर आदमी ।

इस जहाँ में तू चाहे किसी से न डर ,
अपने दिल की अदालत से डर आदमी ।

 हर बुराई सुराखें है इस नाव की,
जिन्दगी नाव है नाव पर आदमी ।

आदमी है तो कुछ आदमीयत भी रख,
गैर का गम भी महसूस कर आदमी ।

तू समझदार है ना कहीं और जा,
ख़ुद से ही ख़ुद कभी बात कर आदमी ।


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