Friday, May 1, 2020
पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष 'प्रीत' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष 'प्रीत' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
पंचकवि-चौरासी घाट:कवि श्री रामनरेश 'नरेश':बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
पंचकवि-चौरासी घाट : कवि श्री रामनरेश 'नरेश' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
पंचकवि-चौरासी घाट:आकाश उपाध्याय 'शब्दाकाश':बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
पंचकवि-चौरासी घाट : आकाश उपाध्याय 'शब्दाकाश' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट
Thursday, April 30, 2020
पञ्चकवि चौरासी घाट : गाय घाट
दोस्तों ! गायघाट, वाराणसी गंगा तट पर सम्पन्न पंचकवि चौरासी घाट के आठवें कार्यक्रम की पूरी रिकार्डिंग प्रस्तुत है...
1. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी द्वारा काव्यपाठ की गई रचना
न पूछो कौन क्या-क्या छोड़ बैठे |
ये पंछी अब चहकना छोड़ बैठे |
लड़ाई अब करें अपनों से कैसे,
इसी से कुछ भी कहना छोड़ बैठे |
हुए जबसे दिवंगत माँ-पिताजी,
तभी से हम मचलना छोड़ बैठे |
कई रिश्तों ने इतनी चोट दी है,
किसी से मिलना-जुलना छोड़ बैठे |
तुम्हे देखा है जबसे, ये हुआ है ;
मुसव्विर रंग भरना छोड़ बैठे |
यही जन्नत हमें महसूस होगी,
सियासतदां जो लड़ना छोड़ बैठे |
ख़ुशी में गैर भी अपने बने पर,
ग़मों में साथ मेरा छोड़ बैठे |
बदलना चाहते थे जो ज़माना,
हुआ ऐसा कि दुनिया छोड़ बैठे |
2. संतोष कुमार 'प्रीत'द्वारा काव्यपाठ की गई रचना
कोयलिया अपनी गान से,
पपीहा पी की तान से ,
सु बह सुबह जगा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।
शबाबे सर्द ढल गया,
हवा का रुख बदल गया,
मधुर उमंग ला गया ।
देखो बसन्त आ गया -2।।
अमराइयाँ महक उठी,
कुमुदिनिया चटक उठी,
अली कली खिला गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।
कली कली निखार है,
चमन चमन बहार है,
खुमार सब पे छा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।
हरी भरी धरा लगे,
पवन सुगन्ध भरा लगे,
ये कौन सब सजा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।
तके यूँ पी को बावरी,
उम्मीद से भरी भरी,
हिया को संग भा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।
ये 'प्रीत' का प्रतीक है,
ये लागे सबको नीक है,
कि गीत नव बना गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।
Monday, April 27, 2020
Friday, January 31, 2020
पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्न वदन चतुर्वेदी : हनुमानगढ़ी घाट
मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है |
कहीं कोई दुहाई दे रहा है |
अगर तूने नहीं गलती किया तो,
बता तू क्यों सफाई दे रहा है |
तुम्हारे क़ैद में महफूज रहता,
मुझे तू क्यों रिहाई दे रहा है |
दिखाया जा रहा जो कुछ छिपाकर,
वही हमको दिखाई दे रहा है |
उसी से प्यार मुझको हो गया है,
मुझे जो बेवफाई दे रहा है |
जहन्नुम में जगह खली नहीं नहीं है,
भले को क्यों बुराई दे रहा है |
सही लिखने का जज्बा है यही जो,
कलम को रोशनाई दे रहा है |
बहुत मुश्किल घड़ी है वक्त हमको,
कुआँ इक ओर खाई दे रहा है |
सियासत का सबक यारों में मुझको,
मुसलमाँ, सिख, ईसाई दे रहा है |
मिले हम खुश हुए लेकिन ये गम है,
ये मिलना कल जुदाई दे रहा है |
न अब परिवार में कुछ पल बिताना,
ये रिश्तों में ढिठाई दे रहा है |
पंचकवि-चौरासी घाट : कवि संतोष 'प्रीत' : हनुमानगढ़ी घाट
छोड़ कर जंगलो के घर बन्दर।
आ गए है सभी शहर बन्दर।।
है परेशान नगर के वासी,
ढ़ा रहे इस कदर कहर बन्दर।
जब भी आते है नही ये तन्हा,
साथ लेकर के हमसफ़र बन्दर।
अब तो छतपर निकलना मुश्किल है,
इस तरह से दिखाते डर बन्दर।
जो कभी भी हुआ शिकार उनको,
याद आते है उम्र भर बन्दर ।
घर बनाया है काट कर जंगल,
'प्रीत' उसका ही है असर बन्दर।।
पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : लालघाट
आओ
देखें मुहब्बत का सपना |
एक डोर में बंधेंगें, प्यार हम-तुम करेंगें, एक छोटा-सा घर होगा अपना |
चाँदनी रात में छत पे सोये हुए,
एक दूजे की बाँहों में खोये हुए,
आँखों की पुतलियों की हसीं झील में,
अपनी परछाईयों को डुबोए हुए,
मीठी बातें करेंगें, मुलाकातें करेंगें,
पूरा होगा शब-ए-फुरकत का सपना.......आओ देखें मुहब्बत का सपना |
मिले ऐसे कि हम कभी बिछड़े नहीं,
बने तस्वीर ऐसे की बिगड़े नहीं,
प्यार से प्यार की है ये बगिया खिली,
प्यार का चमन कहीं उजड़े नहीं,
और क्या हम करेंगें, ये दुआ हम करेंगें,
कभी पड़े ना बिछड़ कर तड़पना........आओ देखें मुहब्बत का सपना |
एक डोर में बंधेंगें, प्यार हम-तुम करेंगें, एक छोटा-सा घर होगा अपना |
चाँदनी रात में छत पे सोये हुए,
एक दूजे की बाँहों में खोये हुए,
आँखों की पुतलियों की हसीं झील में,
अपनी परछाईयों को डुबोए हुए,
मीठी बातें करेंगें, मुलाकातें करेंगें,
पूरा होगा शब-ए-फुरकत का सपना.......आओ देखें मुहब्बत का सपना |
मिले ऐसे कि हम कभी बिछड़े नहीं,
बने तस्वीर ऐसे की बिगड़े नहीं,
प्यार से प्यार की है ये बगिया खिली,
प्यार का चमन कहीं उजड़े नहीं,
और क्या हम करेंगें, ये दुआ हम करेंगें,
कभी पड़े ना बिछड़ कर तड़पना........आओ देखें मुहब्बत का सपना |
पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष 'प्रीत' : लालघाट
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के।
कैसे बताये क्या है अब हाल जिंदगी के ।।
बचपन है जवानी है कभी ढलती उम्र है,
हर पल करीब मौत के यह बढ़ती उम्र है,
कब कौन सा बन जाये पल काल जिंदगी के।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के ।।
कब फर्स से उठा कर यह अर्स पर बिठा दे,
कब अर्स से उठा कर फिर फर्स पर गिरा दे,
कोई समझ न पाया कभी चाल जिंदगी के।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के ।।
गुजरे हुए पलों की परछाईया बची है,
हिस्से में अपने अब भी तन्हाइयां बची है,
यादें ही रह गई है अब ढाल जिंदगी के ।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के।।
जैसे कि इस जहाँ में दिन रात बदलते है,
वैसे ही 'प्रीत' देखा हालात बदलते है,
शुभकामनाए सबको खुशहाल जिंदगी के।
कैसे बताये क्या है अब हाल जिंदगी के ।।
पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बूंदी-परकोटा घाट
इस गए साल ने हमसे
ऐसा किया |
कुछ बुरा कर गया कुछ
तो अच्छा किया |
हमने सोचा बहुत पा
सके सब नहीं,
मन की इच्छा में यूं
रह गई कुछ कमी |
वक्त की चाल पे क्यों
भरोसा किया........
बेटी-बेटे गए अगले
दर्जे में अब,
कुछ इजाफा हुआ फिर से
कर्जे में अब,
काम-धंधे ने यूं
बेसहारा किया..........
कुछ नए लोग जीवन में
हमसे मिले,
बढ़ गए कुछ पुरानों के
शिकवे गिले,
बात बढ़ने से उनसे
किनारा किया......
गम ख़ुशी के कई जाम
पीते रहे,
इक नई आस में हम तो
जीते रहे,
कुछ भला आगे होगा ये
सोचा किया....
कुछ पुराने थे अपने,
बिछड़ भी गए,
हम कई बार तनहा से पड़
भी गए,
फिर संभलकर न्य इक
इरादा किया......
साल जो आएगा वो ख़ुशी
लाएगा,
दूर गम होंगे लब पर हंसी
लाएगा,
वक्त ने हमसे ऐसा
इशारा किया......
Subscribe to:
Posts (Atom)