Friday, January 31, 2020

पंचकवि-चौरासी घाट : कवि संतोष कुमार 'प्रीत' : बूंदी-परकोटा घाट

हँसते हँसते दर्द को सहते
आँसू पीना बड़ा कठिन है।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।

आशा और निराशा क्या है,
इस मन की अभिलाषा क्या है।
अब तक तो यह समझ न पाया,
जीवन की परिभाषा क्या है ।।

तार तार सब रिश्ते होते
उनको सीना बड़ा कठिन है।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।

किसे पता है कल क्या होना,
क्या पाना है क्या है खोना ।
यही समझ पाया हूँ अब तक,
हर कोई है एक खिलौना ।।

खेल रहा है कोई इनसे,
उसे समझना बड़ा कठिन है।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।


पतझड़ है मधुमास कभी है,
घिरी घटा आकाश कभी है।
कभी शरद की ठिठुरन है तो
ग्रीष्म का भी अभास कभी है।।

बिना 'प्रीत' जो भी है गुजरा
वही महीना बड़ा कठिन है ।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।





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