Friday, January 31, 2020

पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष 'प्रीत' : लालघाट

आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के।
कैसे बताये क्या है अब हाल जिंदगी के ।।

बचपन है जवानी है कभी ढलती उम्र है,
हर पल करीब मौत के यह बढ़ती उम्र है,
कब कौन सा बन जाये पल काल जिंदगी के।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के ।।

कब फर्स से उठा कर यह अर्स पर बिठा दे,
कब अर्स से उठा कर फिर फर्स पर गिरा दे,
कोई समझ न पाया कभी चाल जिंदगी के।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के ।।

गुजरे हुए पलों की परछाईया बची है,
हिस्से में अपने अब भी तन्हाइयां बची है,
यादें ही रह गई है अब ढाल जिंदगी के ।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के।।

जैसे कि इस जहाँ में दिन रात बदलते है,
वैसे ही 'प्रीत' देखा हालात बदलते है,
शुभकामनाए सबको खुशहाल जिंदगी के।
कैसे बताये क्या है अब हाल जिंदगी के ।।


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