कहाँ गयी वो प्यार की बातें,
कहाँ गया वो अपना पन।
कल थी जहाँ पे हँसी ठिठोली,
आज वहाँ क्यो है क्रंदन ।।
कहाँ गयी वो छूआ छुई
वो छुपा छुपी गुल्ली डंडा,
और जीत की खातिर अपने
अपनाना वो हथकंडा ,
कहाँ खो गया भोलापन वो
कहाँ खो गया है बचपन ।
कल थी जहाँ पे हँसी ठिठोली,
आज वहाँ क्यो है क्रंदन ।।
अपने सभी पड़ोसी भी
परिवार सरीखा लगते थे,
छोटी छोटी गलती पर वो
अक्सर टोका करते थे,
कहाँ गए काका ताउ जी
कहॉ गए चाचा जुम्मन ।
कल थी जहाँ पे हंसी ठिठोली,
आज वहाँ क्यों है क्रंदन ।।
बदल गए अब सपने अपने
और विचार भी बदल गए,
आज के बच्चे बाप से अपने
कितने आगे निकल गए ,
माता पिता अकेले घर मे,
और साथ है सूनापन।
कहॉ गई वो प्यार की बातें
कहॉ गया वो अपनापन।।
परिवर्तन के दौर में हमने
लोग बदलते देखा है,
अपने स्वार्थ में अपनों को ही
अक्सर छलते देखा है
'प्रीत' प्रभावी आज हो रहा
द्वेष कपट छल ओछापन ।
कल थी जहाँ पे हँसी ठिठोली,
आज वहाँ बस है क्रंदन ।।
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