[1]
काशी में जाने गये, हैं चौरासी घाट |
ज्ञान धर्म संस्कृति सभी, मिलते इनके बाट ||
[२] मुक्तक
* पाँच नदियों का संगम इसी घाट पर
पंच तीर्थों का संगम इसी घाट पर
गुरु बनाये कबीरा मिला ज्ञान था
साढ़े कितनों ने सरगम इसी घाट पर
**माँ गंगा की लहरों में हम
घाटों के इन पहरों में हम
चले है जन जन गीत सुनाने
सुबहो शाम दोपहरों में हम
[3 ]
वक्त जो लाये ढ़ाल तो ढ़लकर देखो तुम |
उम्मीदों की राह पे चलकर देखो तुम ||
चलते चलते एक दिन मंजिल आएगी |
गिरों हज़ारों बार सम्भलकर देखो तुम ||
अपनापन तो अपनी हद को तय करता है |
गैरों की आवाज में खुलकर देखो तुम ||
जीत मिले तो हारे का सम्मान करो |
हार मिले तो जीत में घुलकर देखो तुम ||
काशी में जाने गये, हैं चौरासी घाट |
ज्ञान धर्म संस्कृति सभी, मिलते इनके बाट ||
[२] मुक्तक
* पाँच नदियों का संगम इसी घाट पर
पंच तीर्थों का संगम इसी घाट पर
गुरु बनाये कबीरा मिला ज्ञान था
साढ़े कितनों ने सरगम इसी घाट पर
**माँ गंगा की लहरों में हम
घाटों के इन पहरों में हम
चले है जन जन गीत सुनाने
सुबहो शाम दोपहरों में हम
[3 ]
वक्त जो लाये ढ़ाल तो ढ़लकर देखो तुम |
उम्मीदों की राह पे चलकर देखो तुम ||
चलते चलते एक दिन मंजिल आएगी |
गिरों हज़ारों बार सम्भलकर देखो तुम ||
अपनापन तो अपनी हद को तय करता है |
गैरों की आवाज में खुलकर देखो तुम ||
जीत मिले तो हारे का सम्मान करो |
हार मिले तो जीत में घुलकर देखो तुम ||
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