केवल नदी नहीं है, संस्कार है गंगा
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा।।
केवल नदी नहीं है संस्कार है गंगा।।
गंगा है द्वार मुक्ति का
हर वक्त खुला है।
काशी गवाह है कि यहां
सत्य तुला है
धर्म जाति देश का, श्रृंगार है गंगा...
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...
नहरों के जाल में कभी
बांधों के जाल में
आके फंस रहीं हैं मां
शहरों की जाल में
फिर भी कुछ न कह रहीं लाचार हैं गंगा
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...
गंगा के पास दर्द हैं
आवाज़ नहीं है
रोने और चिल्लाने की
रिवाज़ नहीं है
ममतामयी है देवी, मजबूर हैं गंगा...
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...
आओ जरा सा देखें तो,
क्या इसका हाल है
जीना मुहाल है और
मरना मुहाल है
जन जन का करती सदियों से
उद्धार ये गंगा...
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...
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