Thursday, May 25, 2023

शाश्वत संस्कृति मंच काव्यगोष्ठी


 

'मुझमें कोई नदी है' : ग़ज़ल-संग्रह विमोचन समारोह


 

काशी काव्य संगम काव्यगोष्ठी

 


शाश्वत काव्यगोष्ठी

 


Thursday, October 6, 2022

शाश्वत काव्यगोष्ठी का आयोजन

रविवार 2 अक्टूबर को गांधी और शास्त्री जी की जयन्ती पर शाश्वत काव्यगोष्ठी का आयोजन


 

Wednesday, April 20, 2022

ग़ज़ल-संग्रह 'जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ' एवं दोहा-संग्रह 'डाल-डाल टेसू खिले' का विमोचन

रामनवमी के पावन अवसर पर दिनांक 10-04-22 को राजकीय जिला पुस्तकालय, वाराणसी में हम दंपत्ति श्रीमती कंचनलता चतुर्वेदी कृत दोहा-संग्रह 'डाल-डाल टेसू खिले' और प्रसन्न वदन चतुर्वेदी 'अनघ' कृत ग़ज़ल-संग्रह 'जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ' का विमोचन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में अध्यक्ष श्री हीरालाल मिश्र 'मधुकर', मुख्य अतिथि- डा० चन्द्रभाल 'सुकुमार', मुख्य वक्ता डा० इन्दीवर पाण्डेय, विशिष्ट अतिथि- डा० रामसुधार सिंह, श्री उमाशंकर चतुर्वेदी 'कंचन', श्री दीनानाथ द्विवेदी 'रंग' जी के साथ-साथ प्रकाशक छतिश द्विवेदी, श्री केशव शरण, श्रीमती मंजरी पाण्डेय, श्रीमती छाया शुक्ला, श्री सूर्यप्रकाश मिश्र, श्री योगेन्द्रनारायण चतुर्वेदी 'वियोगी', श्री महेन्द्रनाथ तिवारी 'अलंकार', श्री संतोष 'प्रीत', श्री धर्मेन्द्र गुप्त 'साहिल', श्री सीमांत प्रियदर्शी, श्री गौतम अरोड़ा 'सरस', श्री विन्ध्याचल पाण्डेय 'सगुन', श्री शरद श्रीवास्तव, श्रीमती नसीमा निशा, श्रीमती झरना मुखर्जी, श्री आलोक सिंह, श्री एखलाख भारतीय, श्री सिद्धनाथ शर्मा, श्री टीकाराम शर्मा, श्री लियाकत अली, श्री कमला प्रसाद 'जख्मी',श्री विकास पाण्डेय, श्री नवलकिशोर गुप्त, श्रीमती श्रुति गुप्त, श्री परमहंस तिवारी, श्री सुनील सेठ, श्री ओमप्रकाश चंचल, श्री सुनील श्रीवास्तव, श्री सिद्धार्थ सिंह, सुश्री प्रियंका तिवारी एवं नगर के अनेक रचनाकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन राजकीय पुस्तकालय, वाराणसी के पुस्तकालयाध्यक्ष श्री कंचन सिंह परिहार ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में कु० शाम्भवी चतुर्वेदी ने संगीतमय सरस्वती वन्दना एवं भजन प्रस्तुत किया तथा प्रसन्न वदन चतुर्वेदी द्वारा अपनी गजलों की संगीतमय प्रस्तुति की गई। डा० शरद श्रीवास्तव ने प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत किया और चतुर्वेदी दम्पत्ति हेतु एक गीत प्रस्तुत कर उन्हें स्मृति चिन्ह प्रदान किया। अंत में संतोष कुमार प्रीत ने कार्यक्रम में सबकी उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया। कुछ छायाचित्र...💐💐💐💐💐
 
















 

Friday, May 1, 2020

पंचकवि-चौरासी घाट:कवि विन्ध्याचल पाण्डेय:बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : कवि विन्ध्याचल पाण्डेय : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

 

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

 

पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष 'प्रीत' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष 'प्रीत' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

 

पंचकवि-चौरासी घाट:कवि श्री रामनरेश 'नरेश':बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : कवि श्री रामनरेश 'नरेश' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

 

पंचकवि-चौरासी घाट:आकाश उपाध्याय 'शब्दाकाश':बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : आकाश उपाध्याय 'शब्दाकाश' : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

Thursday, April 30, 2020

पञ्चकवि चौरासी घाट : गाय घाट

दोस्तों ! गायघाट, वाराणसी गंगा तट पर सम्पन्न पंचकवि चौरासी घाट के आठवें कार्यक्रम की पूरी रिकार्डिंग प्रस्तुत है...

1. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी द्वारा काव्यपाठ की गई रचना

न पूछो कौन क्या-क्या छोड़ बैठे |
ये पंछी अब चहकना छोड़ बैठे |

लड़ाई अब करें अपनों से कैसे,
इसी से कुछ भी कहना छोड़ बैठे |

हुए जबसे दिवंगत माँ-पिताजी,
तभी से हम मचलना छोड़ बैठे |

कई रिश्तों ने इतनी चोट दी है,
किसी से मिलना-जुलना छोड़ बैठे |

तुम्हे देखा है जबसे, ये हुआ है ;
मुसव्विर रंग भरना छोड़ बैठे |

यही जन्नत हमें महसूस होगी,
सियासतदां जो लड़ना छोड़ बैठे |

ख़ुशी में गैर भी अपने बने पर,
ग़मों में साथ मेरा छोड़ बैठे |

बदलना चाहते थे जो ज़माना,
हुआ ऐसा कि दुनिया छोड़ बैठे |


2. संतोष कुमार 'प्रीत'द्वारा काव्यपाठ की गई रचना

कोयलिया अपनी गान से,
पपीहा पी की तान  से ,
सु बह सुबह जगा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

शबाबे सर्द ढल गया,
हवा का रुख बदल गया,
मधुर उमंग ला गया ।
देखो बसन्त आ गया -2।।

अमराइयाँ महक उठी,
कुमुदिनिया चटक उठी,
अली कली खिला गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

कली कली निखार है,
चमन चमन बहार है,
खुमार सब पे छा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

हरी भरी धरा लगे,
पवन सुगन्ध भरा लगे,
ये कौन सब सजा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

तके यूँ पी को बावरी,
उम्मीद से भरी भरी,
हिया को संग भा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

ये 'प्रीत' का प्रतीक है,
ये लागे सबको नीक है,
कि गीत नव बना गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

Monday, April 27, 2020

Friday, January 31, 2020

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्न वदन चतुर्वेदी : हनुमानगढ़ी घाट

मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है |
कहीं कोई दुहाई दे रहा है |

अगर तूने नहीं गलती किया तो,
बता तू क्यों सफाई दे रहा है |

तुम्हारे क़ैद में महफूज रहता,
मुझे तू क्यों रिहाई दे रहा है |

दिखाया जा रहा जो कुछ छिपाकर,
वही हमको दिखाई दे रहा है |

उसी से प्यार मुझको हो गया है,
मुझे जो बेवफाई दे रहा है |

जहन्नुम में जगह खली नहीं नहीं है,
भले को क्यों बुराई दे रहा है |

सही लिखने का जज्बा है यही जो,
कलम को रोशनाई दे रहा है |

बहुत मुश्किल घड़ी है वक्त हमको,
कुआँ इक ओर खाई दे रहा है |

सियासत का सबक यारों में मुझको,
मुसलमाँ, सिख, ईसाई दे रहा है |

मिले हम खुश हुए लेकिन ये गम है,
ये मिलना कल जुदाई दे रहा है |

न अब परिवार में कुछ पल बिताना,
ये रिश्तों में ढिठाई दे रहा है |


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि विन्ध्याचल पाण्डेय 'शगुन' : हनुमानगढ़ी घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि संतोष 'प्रीत' : हनुमानगढ़ी घाट

छोड़ कर जंगलो के घर बन्दर।
आ गए है सभी शहर बन्दर।।

है परेशान नगर के वासी,
ढ़ा रहे इस कदर कहर बन्दर।

जब भी आते है नही ये तन्हा,
साथ लेकर के हमसफ़र बन्दर।

अब तो छतपर निकलना मुश्किल है,
इस तरह से दिखाते डर बन्दर।

जो कभी भी हुआ शिकार उनको,
याद आते है उम्र भर बन्दर ।

घर बनाया है काट कर जंगल,
'प्रीत' उसका ही है असर बन्दर।।

पंचकवि-चौरासी घाट : श्री धर्मेन्द्र गुप्त 'साहिल' : हनुमानगढ़ी घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि गौतम अरोड़ा 'सरस' : हनुमानगढ़ी घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि डा0 विन्ध्याचल पाण्डेय 'शगुन' : लाल घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : लालघाट

आओ देखें मुहब्बत का सपना |
एक डोर में बंधेंगें, प्यार हम-तुम करेंगें, एक छोटा-सा घर होगा अपना |

चाँदनी रात में छत पे सोये हुए,
एक दूजे की बाँहों में खोये हुए,
आँखों की पुतलियों की हसीं झील में,
अपनी परछाईयों को डुबोए हुए,
मीठी बातें करेंगें, मुलाकातें करेंगें,
पूरा होगा शब-ए-फुरकत का सपना.......आओ देखें मुहब्बत का सपना |

मिले ऐसे कि हम कभी बिछड़े नहीं,
बने तस्वीर ऐसे की बिगड़े नहीं,
प्यार से प्यार की है ये बगिया खिली,
प्यार का चमन कहीं उजड़े नहीं,
और क्या हम करेंगें, ये दुआ हम करेंगें,
कभी पड़े ना बिछड़ कर तड़पना........आओ देखें मुहब्बत का सपना |