Thursday, April 30, 2020

पञ्चकवि चौरासी घाट : गाय घाट

दोस्तों ! गायघाट, वाराणसी गंगा तट पर सम्पन्न पंचकवि चौरासी घाट के आठवें कार्यक्रम की पूरी रिकार्डिंग प्रस्तुत है...

1. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी द्वारा काव्यपाठ की गई रचना

न पूछो कौन क्या-क्या छोड़ बैठे |
ये पंछी अब चहकना छोड़ बैठे |

लड़ाई अब करें अपनों से कैसे,
इसी से कुछ भी कहना छोड़ बैठे |

हुए जबसे दिवंगत माँ-पिताजी,
तभी से हम मचलना छोड़ बैठे |

कई रिश्तों ने इतनी चोट दी है,
किसी से मिलना-जुलना छोड़ बैठे |

तुम्हे देखा है जबसे, ये हुआ है ;
मुसव्विर रंग भरना छोड़ बैठे |

यही जन्नत हमें महसूस होगी,
सियासतदां जो लड़ना छोड़ बैठे |

ख़ुशी में गैर भी अपने बने पर,
ग़मों में साथ मेरा छोड़ बैठे |

बदलना चाहते थे जो ज़माना,
हुआ ऐसा कि दुनिया छोड़ बैठे |


2. संतोष कुमार 'प्रीत'द्वारा काव्यपाठ की गई रचना

कोयलिया अपनी गान से,
पपीहा पी की तान  से ,
सु बह सुबह जगा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

शबाबे सर्द ढल गया,
हवा का रुख बदल गया,
मधुर उमंग ला गया ।
देखो बसन्त आ गया -2।।

अमराइयाँ महक उठी,
कुमुदिनिया चटक उठी,
अली कली खिला गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

कली कली निखार है,
चमन चमन बहार है,
खुमार सब पे छा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

हरी भरी धरा लगे,
पवन सुगन्ध भरा लगे,
ये कौन सब सजा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

तके यूँ पी को बावरी,
उम्मीद से भरी भरी,
हिया को संग भा गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

ये 'प्रीत' का प्रतीक है,
ये लागे सबको नीक है,
कि गीत नव बना गया।
देखो बसन्त आ गया -2।।

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