Tuesday, December 10, 2019

पंचकवि-चौरासी घाट-1 : संतोष कुमार 'प्रीत' : पंचगंगा घाट

1.
पंच गंगा के घाट पर, पंच कवि के संग।
काव्य पाठ को आ गए, रँगे प्रीत के रंग।।
2.
ब्रह्मा के कमण्डल से निकली
शिव शंकर के लट में ठहरी।
भगीरथ के तप के कारण,
माँ गंगा धरती पर उतरी ।।
3.
देखिए गंगा हमारी, कैसी निर्बल हो गई।
स्वर्ग से आई सुधा थी, बिष भरा जल हो गई।।

सुरसरी मन्दाकिनी विष्णुनदी देवापगा,
हरी नदी भागीरथी है शोभती शिव की जटा।
सैकणों हैं नाम इसके नाम में रख्खा है क्या,
सच तो ये है इस धरा पर हर किसी की है ये माँ।।
अपने ही बच्चों के कारण माँ की गरिमा खो गई।
स्वर्ग से आई सुधा थी विष भरा जल हो गई।।

हर किसी को दे सहारा बाँह गंगा जल की है,
स्वर्ग को ले जाए जो वह राह गंगा जल की है।
प्राण जब निकले बदन से चाह गंगा जल की है,
हृदय को अब व्यथित कर दे आह गंगा जल की है।।
जीवन दायनी पाप नाशिनी आज गरल हो गई।
स्वर्ग से आई सुधा थी विष भरा जल हो गई।।

स्वक्छ निर्मल नीर गंगा का रहे यह ध्यान हो,
आत्मीक सम्मान से बढ़ कर के इसका मान हो।
अपने प्राकृतिक ही गुणों में हो तो जग कल्याण हो,
खो न जाये यह कही अपना धरा वीरान हो।।
'प्रीत' पावन  माँ का देखो मैली आँचल हो गई।
स्वर्ग से आई सुधा थी विष भरा जल हो गई।।
4.
मधुर भावना हो हृदय में हमेशा
सभी के लिए कामना है हमारी,
न हो द्वेष नफरत न शिकवा शिकायत
किसी के लिए कामना है हमारी।
मिली चार दिन की जो ये जिंदगी है
इसे व्यर्थ यूँ ही न कोई गवाए,
मिले जो किसी से लिये 'प्रीत' दिल में
खुशी के लिए कामना है हमारी।।

पंचकवि-चौरासी घाट-1 : डॉ. सर्वेशानन्द : पंचगंगा घाट

[1]
काशी   में   जाने  गये,  हैं   चौरासी  घाट |
ज्ञान धर्म संस्कृति सभी, मिलते इनके बाट ||
[२] मुक्तक
* पाँच नदियों का संगम इसी घाट पर
   पंच  तीर्थों  का संगम इसी घाट पर
   गुरु  बनाये  कबीरा  मिला  ज्ञान था
   साढ़े कितनों ने सरगम इसी घाट पर
**माँ गंगा की लहरों में हम
   घाटों के इन पहरों में हम
   चले है जन जन गीत सुनाने
   सुबहो शाम दोपहरों में हम
[3 ]
वक्त जो लाये ढ़ाल तो ढ़लकर देखो तुम |
उम्मीदों  की  राह  पे  चलकर देखो तुम ||
चलते  चलते  एक  दिन  मंजिल  आएगी |
गिरों  हज़ारों  बार  सम्भलकर  देखो तुम ||
अपनापन तो अपनी हद को तय करता है |
गैरों  की  आवाज  में  खुलकर  देखो तुम ||
जीत  मिले  तो  हारे  का  सम्मान  करो |
हार मिले तो जीत में घुलकर देखो तुम ||

पंचकवि-चौरासी घाट-1 : शम्भूनाथ दूबे 'शैल' : पंचगंगा घाट

केवल नदी नहीं है, संस्कार है गंगा
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा।। 

केवल नदी नहीं है संस्कार है गंगा।।

गंगा है द्वार मुक्ति का
                हर वक्त खुला है।
काशी गवाह है कि यहां
                सत्य तुला है
धर्म जाति देश का, श्रृंगार है गंगा...
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...

नहरों के जाल में कभी
                बांधों के जाल में
आके फंस रहीं हैं मां
                शहरों की जाल में
फिर भी कुछ न कह रहीं लाचार हैं गंगा
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...

गंगा के पास दर्द हैं
                    आवाज़ नहीं है
रोने और चिल्लाने की
                    रिवाज़ नहीं है
ममतामयी है देवी, मजबूर हैं गंगा...
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...

आओ जरा सा देखें तो,
                  क्या इसका हाल है
जीना मुहाल है और
                     मरना मुहाल है
जन जन का करती सदियों से
                    उद्धार ये गंगा...
कैसे न गाँउ गीत मेरी मां हैं गंगा...