Friday, January 31, 2020

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्न वदन चतुर्वेदी : हनुमानगढ़ी घाट

मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है |
कहीं कोई दुहाई दे रहा है |

अगर तूने नहीं गलती किया तो,
बता तू क्यों सफाई दे रहा है |

तुम्हारे क़ैद में महफूज रहता,
मुझे तू क्यों रिहाई दे रहा है |

दिखाया जा रहा जो कुछ छिपाकर,
वही हमको दिखाई दे रहा है |

उसी से प्यार मुझको हो गया है,
मुझे जो बेवफाई दे रहा है |

जहन्नुम में जगह खली नहीं नहीं है,
भले को क्यों बुराई दे रहा है |

सही लिखने का जज्बा है यही जो,
कलम को रोशनाई दे रहा है |

बहुत मुश्किल घड़ी है वक्त हमको,
कुआँ इक ओर खाई दे रहा है |

सियासत का सबक यारों में मुझको,
मुसलमाँ, सिख, ईसाई दे रहा है |

मिले हम खुश हुए लेकिन ये गम है,
ये मिलना कल जुदाई दे रहा है |

न अब परिवार में कुछ पल बिताना,
ये रिश्तों में ढिठाई दे रहा है |


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि विन्ध्याचल पाण्डेय 'शगुन' : हनुमानगढ़ी घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि संतोष 'प्रीत' : हनुमानगढ़ी घाट

छोड़ कर जंगलो के घर बन्दर।
आ गए है सभी शहर बन्दर।।

है परेशान नगर के वासी,
ढ़ा रहे इस कदर कहर बन्दर।

जब भी आते है नही ये तन्हा,
साथ लेकर के हमसफ़र बन्दर।

अब तो छतपर निकलना मुश्किल है,
इस तरह से दिखाते डर बन्दर।

जो कभी भी हुआ शिकार उनको,
याद आते है उम्र भर बन्दर ।

घर बनाया है काट कर जंगल,
'प्रीत' उसका ही है असर बन्दर।।

पंचकवि-चौरासी घाट : श्री धर्मेन्द्र गुप्त 'साहिल' : हनुमानगढ़ी घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि गौतम अरोड़ा 'सरस' : हनुमानगढ़ी घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि डा0 विन्ध्याचल पाण्डेय 'शगुन' : लाल घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : लालघाट

आओ देखें मुहब्बत का सपना |
एक डोर में बंधेंगें, प्यार हम-तुम करेंगें, एक छोटा-सा घर होगा अपना |

चाँदनी रात में छत पे सोये हुए,
एक दूजे की बाँहों में खोये हुए,
आँखों की पुतलियों की हसीं झील में,
अपनी परछाईयों को डुबोए हुए,
मीठी बातें करेंगें, मुलाकातें करेंगें,
पूरा होगा शब-ए-फुरकत का सपना.......आओ देखें मुहब्बत का सपना |

मिले ऐसे कि हम कभी बिछड़े नहीं,
बने तस्वीर ऐसे की बिगड़े नहीं,
प्यार से प्यार की है ये बगिया खिली,
प्यार का चमन कहीं उजड़े नहीं,
और क्या हम करेंगें, ये दुआ हम करेंगें,
कभी पड़े ना बिछड़ कर तड़पना........आओ देखें मुहब्बत का सपना |


पंचकवि-चौरासी घाट : संतोष 'प्रीत' : लालघाट

आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के।
कैसे बताये क्या है अब हाल जिंदगी के ।।

बचपन है जवानी है कभी ढलती उम्र है,
हर पल करीब मौत के यह बढ़ती उम्र है,
कब कौन सा बन जाये पल काल जिंदगी के।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के ।।

कब फर्स से उठा कर यह अर्स पर बिठा दे,
कब अर्स से उठा कर फिर फर्स पर गिरा दे,
कोई समझ न पाया कभी चाल जिंदगी के।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के ।।

गुजरे हुए पलों की परछाईया बची है,
हिस्से में अपने अब भी तन्हाइयां बची है,
यादें ही रह गई है अब ढाल जिंदगी के ।
आये चले गए फिर एक साल जिंदगी के।।

जैसे कि इस जहाँ में दिन रात बदलते है,
वैसे ही 'प्रीत' देखा हालात बदलते है,
शुभकामनाए सबको खुशहाल जिंदगी के।
कैसे बताये क्या है अब हाल जिंदगी के ।।


पंचकवि-चौरासी घाट : हास्य-व्यंग्य कवि देवेन्द्र पाण्डेय : लालघाट


पंचकवि-चौरासी घाट: कवि आलोक मिश्र : लालघाट


पंचकवि-चौरासी घाट:कवि विन्ध्याचल पाण्डेय 'शगुन':बूंदी-परकोटा घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बूंदी-परकोटा घाट

इस गए साल ने हमसे ऐसा किया |
कुछ बुरा कर गया कुछ तो अच्छा किया |

हमने सोचा बहुत पा सके सब नहीं,
मन की इच्छा में यूं रह गई कुछ कमी |
वक्त की चाल पे क्यों भरोसा किया........

बेटी-बेटे गए अगले दर्जे में अब,
कुछ इजाफा हुआ फिर से कर्जे में अब,
काम-धंधे ने यूं बेसहारा किया..........

कुछ नए लोग जीवन में हमसे मिले,
बढ़ गए कुछ पुरानों के शिकवे गिले,
बात बढ़ने से उनसे किनारा किया......

गम ख़ुशी के कई जाम पीते रहे,
इक नई आस में हम तो जीते रहे,
कुछ भला आगे होगा ये सोचा किया....

कुछ पुराने थे अपने, बिछड़ भी गए,
हम कई बार तनहा से पड़ भी गए,
फिर संभलकर न्य इक इरादा किया......

साल जो आएगा वो ख़ुशी लाएगा,
दूर गम होंगे लब पर हंसी लाएगा,
वक्त ने हमसे ऐसा इशारा किया......


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि संतोष कुमार 'प्रीत' : बूंदी-परकोटा घाट

हँसते हँसते दर्द को सहते
आँसू पीना बड़ा कठिन है।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।

आशा और निराशा क्या है,
इस मन की अभिलाषा क्या है।
अब तक तो यह समझ न पाया,
जीवन की परिभाषा क्या है ।।

तार तार सब रिश्ते होते
उनको सीना बड़ा कठिन है।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।

किसे पता है कल क्या होना,
क्या पाना है क्या है खोना ।
यही समझ पाया हूँ अब तक,
हर कोई है एक खिलौना ।।

खेल रहा है कोई इनसे,
उसे समझना बड़ा कठिन है।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।


पतझड़ है मधुमास कभी है,
घिरी घटा आकाश कभी है।
कभी शरद की ठिठुरन है तो
ग्रीष्म का भी अभास कभी है।।

बिना 'प्रीत' जो भी है गुजरा
वही महीना बड़ा कठिन है ।
जीवन जीना बड़ा कठिन है ।।





पंचकवि-चौरासी घाट : कवि सिद्धनाथ शर्मा 'सिद्ध' : बूंदी-परकोटा घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : कवि मुनीन्द्र कुमार 'फुर्तीला' : बूंदी-परकोटा घाट


पञ्चकवि चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : ब्रह्मा घाट

न्यायालय में न्याय नहीं है |
कुछ भी तो पर्याय नहीं है |

मत बाँधो इसको खूंटे से,
बेटी है ये गाय नहीं है |

मोमबत्तियां जला रहे हैं,
न्याय भरा समुदाय नहीं है |

खर्चे पर खर्चे करते हैं,
लेकिन कोई आय नहीं है |

अपराधी फल-फूल रहे हैं,
क्या अब लगती हाय नहीं है |

जब अखबार नहीं; लगता है,
आज सुबह की चाय नहीं है |

तेरी-मेरे, इसकी-उसकी,
मिलती क्योकर राय नहीं है |

जयचन्दों से देश भरा है,
कोई पन्ना-धाय नहीं है |