Friday, December 18, 2009

एक शायर/विनय मिश्र


जैसा कि आप जानते हैं कि एक शायर स्तम्भ में एक ही ग़ज़लकार की रचनायें हर माह प्रकाशित होंगी।आज सबसे पहले विनय मिश्र की ग़ज़लों से इस स्तम्भ की शुरुआत कर रहा हूँ।
विनय मिश्र वर्तमान दौर में ग़ज़ल विधा के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं और ग़ज़ल के लिये पूरे मनोयोग से जुडे़ हुए हैं।
जीवन परिचय-जन्म तिथि-१२ अगस्त १९६६,शिक्षा-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी से एम०ए०,पी०एच०डी०[हिन्दी],देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ग़ज़लों,कविताओं और आलेखों का प्रकाशन,’शब्द कारखाना’[हिन्दी त्रैमासिक]के ग़ज़ल अंक के अतिथि सम्पादक,सम्प्रति-राजकीय कला स्नातकोत्तर महाविद्यालय अलवर[राज०]के हिन्दी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत।


१-नहीं यूँ ही हवा बेकल है मुझमें-

नहीं यूँ ही हवा बेकल है मुझमें।
है कोई बात जो हलचल है मुझमें।
सुनाई दे रही है चीख कोई,
ये किसकी जिन्दगी घायल है मुझमें।
बहुत देखा बहुत कुछ देखना है,
अभी मीलों हरा जंगल है मुझमें।
लगाये साजिशों के पेड़ किसने,
फला जो नफ़रतों का फल है मुझमें।
बुझाई प्यास की भी प्यास जिसने,
अभी उस ज़िन्दगी का जल है मुझमें।
मेरी हर साँस है तेरी बदौलत,
तू ही तो ऐ हवा पागल है मुझमें।
सवालों में लगी हैं इतनी गाँठें,
कहूँ कैसे कि कोई हल है मुझमें।
दिनोंदिन और धँसती है ग़रीबी,
यूँ बढ़ता कर्ज़ का दलदल है मुझमें।
हवाओं में बिखरता जा रहा हूँ,
कहूँ कैसे सुरक्षित कल है मुझमें।


२-रौशनी है बुझी-बुझी अबतक-

रौशनी है बुझी-बुझी अबतक।
गुल खिलाती है तीरगी अबतक।
एक छोटी-सी चाह मिलने की,
वो भी पूरी नहीं हुई अबतक।
बात करता था जो जमाने की,
वो रहा खुद से अजनबी अबतक।
देखकर तुमको जितनी पाई थी,
उतनी पाई न फ़िर खुशी अबतक।
मौत को जीतने की खातिर ही,
दाँव पर है ये ज़िन्दगी अबतक।
मेरा का़तिल था मेरे अपनों में,
मुझको कोई ख़बर न थी अबतक।


३-गिरने न दिया मुझको हर बार संभाला है-

गिरने न दिया मुझको हर बार संभाला है।
यादों का तेरी कितना अनमोल उजाला है।
वो कैसे समझ पाये दुनिया की हकीक़त को,
सांचे में उसे अपने जब दुनिया ने ढाला है।
ये दिन भी परेशाँ है ये रात परेशाँ है,
लोगों ने सवालों को इस तरह उछाला है।
इंसानियत का मन्दिर अबतक न बना पाये,
वैसे तो हर इक जानिब मस्जिद है शिवाला है।
सपनों में भी जीवन है फुटपाथ पे सोते हैं,
जीने का हुनर अपना सदियों से निराला है।
सब एक खुदा के ही बन्दे हैं जहाँ भर में,
नज़रों में मेरी कोई अदना है न आला है।
गंगा भी नहा आये तन धुल भी गया लेकिन,
मन पापियों का अबतक काले का ही काला है।

४-एक सुबह की भरी ताज़गी अब भी है-

एक सुबह की भरी ताज़गी अब भी है।
इस उजास में एक नमी-सी अब भी है। 

ये दुनिया आज़ाद हुई कैसे कह दूँ,
ये दुनिया तो डर की मारी अब भी है।

 पेड़ बहुत हैं लेकिन सायेदार नहीं,
धूप सफ़र में थी जो तीखी अब भी है।

 उजड़ गया है मंजर खुशियों का लेकिन,
इक चाहत यादों में बैठी अब भी है। 

कान लगाकर इनसे आती चीख सुनो,
इन गीतों में घायल कोई अब भी है। 

हर पल दुविधाओं में रहती है लेकिन,
विश्वासों से भरी ज़िन्दगी अब भी है।


५-सूरजमुखी के फूल-

पूरब की ओर मुँह किये सूरजमुखी के फूल।
होते ही भोर खिल उठे सूरजमुखी के फूल।
उड़ने लगीं हवाइयाँ चेहरे पे ओस के,
जब खिलखिलाके हँस पड़े सूरजमुखी के फूल।
तुम दिन की बात करते हो लेकिन मेरे लिये,
रातों के भी हैं हौसले सूरजमुखी के फूल।
वो भी इन्हीं की याद में डूबा हुआ मिला,
जिसको पुकारते हैं ये सूरजमुखी के फूल।
सूरज का साथ देने की हिम्मत लिये हुए,
धरती की गोद में पले सूरजमुखी के फूल।
मुश्किल की तेज धूप का है सामना मगर,
जीते हैं सिर उठा के ये सूरजमुखी के फूल |
सूरज वो आसमान का मुझमें उतर पडा़,
इक बात ऐसी कह गये सूरजमुखी के फूल।

5 comments:

  1. प्र्संंजी
    आपका प्रयास अभिनंदनीय है
    विनय मिश्र की प्रस्तुत गज़लों कहन शानदार है

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  2. waah kya baat hai!

    yahan to khazana hi hai...

    alg alag rangon mein rangin sabhi gazalen ek se badhkar ek hain.

    Vinay ji ko dheron badhaayee.

    Surajmukhi ke phool par ghazal unique aur behad umda hai!

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  3. नमस्कार !
    एक शायर में जनाब विनय मिश्र जी की ग़ज़लें
    पढ़ कर बहुत लुत्फ़ आया ....
    बेशक विनय जी एक आलिम-फ़ाज़िल शख्सियत हैं ....
    उन्हें पढना हर बार एक नया तज्रबा रहता है

    अभिवादन

    ---मुफलिस---

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  4. priya mishraji
    aapko bahut bahut mubarakbad
    hum aapse bahut prabhavit hain personally.
    ramdas akela

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  5. वाह!!! बहुत खूब

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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